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नि:शब्द तुम

MyVision-With the Life and Religion
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बहुत चाहा था अब तेरे दीदार में ज़िंदगी गुज़ारुंगा,

बाकी बचे पलों में तेरे रास्ते बुहारुंगा,

लेकिन तू ही ठुकरा दे जब,

अपने क़रीब ही न आने दे तब,

अश्क़ों से भरी आँखों से किसको निहारुंगा,

मंज़िलें तो गंवाँ चुका हूँ, बाकी ज़िंदगी भी हारुंगा,

शायद ही कोई अपने मन की ज़िंदगी जीता है,

वर्ना हर कोई अपने न बहने वाले अश्क़ पीता है,

पापकर्म के नर्क से चाहे तू जितना डरवा देता है,

फिर भी भूखा बच्चा बाप से चोरी करवा देता है,

विवश है इंसान परिस्थितियों के आगे,

चारो ओर के रास्ते बंद हों और तुम नि:शब्द

तो कोई कहाँ भागे,

भूखे, बिलखते, नादान बच्चों तक को

तू रखता है अपनी रहमतों से ज़ुदा,

बावज़ूद इसके कितना खुशनसीब है तू

कि इंसान मानता है तुमको अपना खुदा,

गोपालजी

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